अजुनि तरी उमगा नव्हे हें सौख्य पहा शिमगा - धृ.
ज्या सौख्यातें आदिं अंतीं स्थितिंतहि होती क्लेश जगा
उडियेवरी उडी मारित मृगजल प्याया कष्ट मृगा -1
दु:खी भोगी दु:खी त्यागी दु:खी सोंगी ढोंगी रे
दु:खी यांचित दु:खी लुंचित दुखिया चित्र सरळ बघा - 2
खोटे मन हें खोटि कल्पना खोटे विषय कुरंगा
अनुभव मोठा समूळचि खोटा रंक स्वष्नींच्या या भागा - 3
म्हणे सोहिरा जें कल्पावें तेंचि पावे सुख रंगा
निर्विकल्प जें सत्य सौख्य तूं दु:ख इतर तें करिं भंगा -4
ज्या सौख्यातें आदिं अंतीं स्थितिंतहि होती क्लेश जगा
उडियेवरी उडी मारित मृगजल प्याया कष्ट मृगा -1
दु:खी भोगी दु:खी त्यागी दु:खी सोंगी ढोंगी रे
दु:खी यांचित दु:खी लुंचित दुखिया चित्र सरळ बघा - 2
खोटे मन हें खोटि कल्पना खोटे विषय कुरंगा
अनुभव मोठा समूळचि खोटा रंक स्वष्नींच्या या भागा - 3
म्हणे सोहिरा जें कल्पावें तेंचि पावे सुख रंगा
निर्विकल्प जें सत्य सौख्य तूं दु:ख इतर तें करिं भंगा -4